रिवर्स माइग्रेशन उद्योग जगत के लिए बड़ी समस्या
संयुक्त राष्ट्र ने अनुमान के अनुसार कोविड-19 महामारी के चलते इस साल वैश्विक अर्थव्यवस्था में 3.2 प्रतिशत की कमी आएगी. यह 1930 की महामंदी के बाद सबसे अधिक गिरावट होगी.पहले से मुश्किलें झेल रही भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कोरोना वायरस का हमला एक बड़ी मुसीबत लेकर आया है.पिछले साल ऑटोमोबाइल सेक्टर, रियल स्टेट, लघु उद्योग समेत असंगठित क्षेत्र में सुस्ती छाई हुई थी. बैंक एनपीए की समस्या से अब तक निपट रहे हैं.अब ऊपर से कोरोना,लॉकडाउन और रिवर्स माइग्रेशन की समस्या .अगर कोरोना संकट के बाद उद्योग धंधे चालू भी हो जाते है तो रिवर्स माइग्रेशन उद्योग जगत के लिए बहुत बड़ी समस्या होग। दरअसल, मजदूर जब गाँव से शहर आए तो उसे हमने माइग्रेशन कहा और ऐसा करने वाले मज़दूरों को प्रवासी मजदूरों की संज्ञा दी गई.अब जब उनके आय का ज़रिया ही नहीं बचा तो ये प्रवासी मज़दूर अपने गाँव वापस लौट रहे हैं, इसको रिवर्स माइग्रेशन कहते है .उत्तर प्रदेश और बिहार से प्रवासी मजदूर देश के दूसरे राज्यों में सबसे ज्यादा जाते हैं. फिर नंबर आता है मध्य प्रदेश, ओडिशा और झारखंड.जिन राज्यों में ये काम की तलाश में जाते हैं उनमें से सबसे आगे है दिल्ली-एनसीआर और महाराष्ट्र. इसके बाद नंबर आता है गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और पंजाब का। राज्य सरकारों से मिले डेटा के अनुसार हमारे देश में 8 करोड़ प्रवासी मज़दूर है।और चिंता इसी बात की है कि अगर मज़दूर वापस ना आए तो अर्थव्यवस्था का क्या होगा? जबकि प्रवासी मजदूरों का गांवों में ही सामाजिक और आर्थिक- दोनों ही तौर पर समाहित करना चुनौतीपूर्ण होगा। फिर भी विस्थापन के लिए तथाकथित शहरी आकर्षण निकट भविष्य में काम करता नहीं दिख रहा। लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों ने शहरी लोगों, खास तौर से किसी भी स्तर पर रोजगार देने वालों से जो उपेक्षा और, एक तरह से, क्रूरता भोगी है, वह शहरों की तरफ दोबारा जाने से इन्हें रोकेगी। इन सबसे सामाजिक तनाव और बेचैनी की भावनाएं देर-सबेर फूटेंगी।
डर इसी बात का है कि अर्थव्यव्स्था पटरी पर नहीं लौटी तो राज्यों और देश का क्या होगा? लेकिन कुछ एक्सपर्ट इसे पॉजिटिव नजरिये से देखते है उनका कहना है शहरों में अलग तरह का औद्योगिकीकरण और शहरी विकास देखने को मिलेगा. मसलन मजदूरों की कदर बढ़ जाएगी, और उनके जीवन स्तर भी सुधर जाएगा.