रोटी बेटी के रिश्ते के बीच चाइनीज वाइरस
भारत और नेपाल केवल पड़ोसी देश नहीं हैं बल्कि इनका सदियों पुराना नाता है जो इन्हे सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, और धार्मिक रूप से जोड़ता है। नेपाल से भारत का रिश्ता रोटी और बेटी का कहा जाता है ।भारत और नेपाल के बीच 1,850 किमी लंबा बॉर्डर है।सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड भारतीय राज्य जिनकी सीमा नेपाल से छूती है । भारत-नेपाल संधि ने नेपालियों को भारतीय जनता के समान शिक्षा और आर्थिक अवसर देने की बात कही गई। भारत नेपाली नागरिकों को सिविल सेवा सहित दूसरी सरकारी सेवाओं में हिस्सा लेने की आजादी है।भारत में करीब 60 लाख नेपाली काम करते हैं।45 हज़ार से ज़्यादा नेपाली नागरिक भारतीय सेना और पैरामिलिट्री में काम करते हैं.करीब 6 लाख भारतीय नेपाल में रहते हैं। नेपाल में 2,539 करोड़ की FDI भारतीय प्रोजेक्टों के ज़रिए आती है. जो नेपाल की करीब कुल FDI का 40% है।
'रोटी-बेटी' के साथ वाले नेपाल में अचानक से भारत विरोध की आंच तेज हो गई है। लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद और गहराता जा रहा है। नेपाल का नया नक्शा जारी करने के ऐलान के बाद नेपाली प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने भारत पर 'सिंहमेव जयते' का तंज कसा।
नेपाल द्वारा भारतीय क्षेत्र को अपने नक्शे में दर्शाने और उस राजनीतिक मानचित्र को कैबिनेट में पास करवाने पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने कड़ा ऐतराज जताया है. भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि एकपक्षीय कार्रवाई ऐतिहासिक तथ्यों, प्रमाणों पर आधारित नहीं है. विदेश मंत्रालय ने कहा कि नेपाल द्वारा नया नक्शा जारी किया जाना, सीमा संबंधी मुद्दों को बातचीत के जरिये हल किए जाने की द्विपक्षीय समझ के विपरीत है
सबसे पहले नेपाल और ब्रिटिश भारत के विवाद की शुरूआत सन् 1816 में शुरू हुई थी, इस दौरान दोनों देशों के बीच सुगौली की संधि हुई थी, जिसके तहत दोनों के बीच महाकाली नदी को सीमारेखा माना गया था। वहीं, नेपाल 'कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा' पर सुगौली संधि के आधार पर अपना दावा पेश करता है। हालांकि, दोनों देश आपसी बातचीत से सीमा विवाद का हल निकालने की पक्ष जुटाव करते आए हैं, परंतु अब नेपाल का रुख बदला-बदला नजर आ रहा है और ये माना जा रहा है कि, चीन ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। कोरोना संकटकाल के बीच नेपाल के इस तरह के व्यवहार के लिए भारत चीन को जिम्मेदार मान रहा है।
दरसल भारत के साथ विवाद के पीछे नेपाल नहीं, बल्कि व्यक्तिगत रूप से पीएम केपी शर्मा ओली . ओली ने पार्टी चेयरमैन और प्रेसिडेंट दोनों पदों पर कब्जा करने के लिए यूएमएल और एमसी की विलय प्रक्रिया में हेरफेर किया था. जबकि उन्होंने दूसरों के लिए एक व्यक्ति, एक पद के सिद्धांत को लागू किया, लेकिन खुद उस पर अमल नहीं किया. जब माधव नेपाल और प्रचंड द्वारा पार्टी में उनके नेतृत्व का विरोध किया गया, तो ओली ने फिर मदद के लिए चीनी राजदूत से संपर्क साधा. जिसके बाद उन्होंने माधव नेपाल और प्रचंड पर दबाव बनाकर ओली को संकट से निकाला. यही वजह है कि अब प्रधानमंत्री ओली चीन के अहसानों की कीमत भारत के साथ रिश्ते खराब करके चुका रहे हैं. चीन को भी अब भारत में ही वो सभी खूबियां नजर आती हैं, जो उसे आर्थिक और रणनीतिक मोर्चे पर मात देकर उसकी जगह ले सकता है. तो क्या ये ही वजह है कि चीन अब भारत को सीमा विवाद में उलझाने की कोशिश कर रहा है.और नेपाल भारत विवाद भी चीन की एक साजिश का हिस्सा है जिसमे ओली को वो एक मोहरे की तरह इस्तमाल कर रहा है
भारत और नेपाल के बीच सम्बन्ध अनादि काल से हैं। दोनों पड़ोसी देश हैं, इसके साथ ही दोनों राष्ट्रों की धार्मिक, सांस्कृतिक, भाषायी एवं ऐतिहासिक स्थिति में बहुत अधिक समानता है। भारत सरकार की कोशिश यही रहेगी मैत्रीपूर्ण तरीके से आपसी वार्ता से इस विवाद का हल निकाले दीर्घकालीन उपायों को लेकर भारत हमेशा आपसी वार्ता ही उपयोग करता है आशा करते हैं कि भारत नेपाल रिश्ते कभी खराब नहीं हो